टूटते देखा था हमने कभी मौज़ों को
साहिल से टकराकर,
किसी चट्टानी सुरंगों में घुसकर
गरजते - बिखरते
या फिर रेत के बियाबां में
भटककर गायब होते.
क्या गरजने वालों की तकदीर
कुछ ऐसी ही है
टूटने, बिखरने वाली?
मौज़ों ने चुपके से
कानों में आकर बस
इतना ही कहा -
अभी तुमने
ज्वार-भाटा
देखा कहाँ है ?
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
हां लगता है कि तकदीर यही होती है....
जवाब देंहटाएं