शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

तकदीर

टूटते देखा था हमने कभी मौज़ों को
साहिल से टकराकर,
किसी चट्टानी सुरंगों में घुसकर
गरजते - बिखरते
या फिर रेत के बियाबां में
भटककर गायब होते.
क्या गरजने वालों की तकदीर
कुछ ऐसी ही है
टूटने, बिखरने वाली?
मौज़ों ने चुपके से
कानों में आकर बस
इतना ही कहा -
अभी तुमने
ज्वार-भाटा
देखा कहाँ है ?

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